Saraswati Vandana

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या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥
शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं
वीणापुस्तक धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्।
हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्॥

हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी अम्बा विमल मति दे। अम्बा विमल मति दे॥
जग सिमटे बनाएं भारत, वह बल विक्रम दे। वह बल विक्रम दे॥
हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी अम्बा विमल मति दे। अम्बा विमल मति दे॥
साहस शील ह्रदय में भर दे, जीवन त्याग-तपोनिधि कर दे, संयम सत्य स्नेह का
वर...स्वाभिमान भर दे।
स्वाभिमान भर दे॥1॥

हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी अम्बा विमल मति दे। अम्बा विमल मति दे॥
लव, कुश, ध्रुव, प्रह्लाद बनें हम मानवता का तिरस हरे हम, सीता, सावित्री, दुर्गा
मां, फिर घर-घर भर दे..
फिर घर-घर भर दे॥2॥

हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी अम्बा विमल मति दे। अम्बा विमल मति दे॥